लिखने की सोचता हूँ कई बार,
लेकिन ये कलम
हमेशा ही रोक देती है हाथों को,
और कहती है,
दिमाग से नहीं,
दिल से सोचो मेरे यार!
दिल की गहराइयों
में जाओ,
अपने पे ज्यादा नहीं,
सिर्फ थोडा- करो एतबार,
फिर देखना,
कोई और नहीं,
में दूँगी
तुम्हे लिखने का
एक नया अंदाज़!
अपने पे ज्यादा नहीं,
सिर्फ थोडा करो एतबार...
-मिथिलेश झा