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Monday, October 21, 2013

एतबार...



लिखने की सोचता हूँ कई बार,
लेकिन ये कलम
हमेशा ही रोक देती है हाथों को,
और कहती है,
दिमाग से नहीं,
दिल से सोचो मेरे यार!
दिल की गहराइयों
में जाओ,
अपने पे ज्यादा नहीं,
सिर्फ थोडा- करो एतबार,
फिर देखना,
कोई और नहीं,
में दूँगी
तुम्हे लिखने का
एक नया अंदाज़!

अपने पे ज्यादा नहीं,
सिर्फ थोडा करो एतबार...
    -मिथिलेश झा

Friday, October 4, 2013

ज़िंदगी से प्यार...

Image source: Google

ना जाने क्‍यूं ,
ये ज़िंदगी,
हर बार,
एक नया पहलु दिखाती है,
मन में उठ रहे,
ना जाने कितने सवालो को,
अपने  ढ़ंग से ही समझाती  है,
अगर समझ सको- तो समझ लो इसको, 
वर्ना इसका क्या है,
ये तो चलती ही जायेगी...
बंद आँखें- खुलेगी  तो सही,
मगर- तब तक ये ज़िंदगी,
शायद- हाथ से निकल जायेगी !
तो उठो और गले से लगाओ इसे,
अपने गमो को मिटाकर,
एक नया आगाज़ करो
थोड़ा वक़्त निकालकर,
अपनी ज़िंदगी से भी प्यार करो!
बस थोड़ा वक़्त निकाल कर- अपने आप से भी प्यार करो !

-मिथिलेश झा 

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