लिखने की सोचता हूँ कई बार,
लेकिन ये कलम
हमेशा ही रोक देती है हाथों को,
और कहती है,
दिमाग से नहीं,
दिल से सोचो मेरे यार!
दिल की गहराइयों
में जाओ,
अपने पे ज्यादा नहीं,
सिर्फ थोडा- करो एतबार,
फिर देखना,
कोई और नहीं,
में दूँगी
तुम्हे लिखने का
एक नया अंदाज़!
अपने पे ज्यादा नहीं,
सिर्फ थोडा करो एतबार...
-मिथिलेश झा
True, words that come from heart, touches heart. :) Lovely read.
ReplyDeleteThank you so much Saru! :)
DeleteVisiting blogosphere after a long time and got your post first in notifications.
ReplyDeleteBeautifully written Mithlash. Absolutely Dil se likha hai!
This is exactly the way i feel so many time :)
Thank you so much Sonia for visiting my blog after a long time.
DeleteHope everything is good with you.