ज़ालिम कितना है संसार
खुशियाँ तो आती है यहाँ पर
पर दुःख की भी है भरमार
कोई सोता
कोई जागता
किसी के हाथ में है तलवार
अपनों पे ही ये तीर चलाते
अपनों को ही ये रुलाते
क्या हुआ दिल को इनके
अब सभी लगते है इनको तिनके
दिल पत्थर सा हुआ विशाल
मायाजाल इस दुनिया का
सारे मासूम बने हैवान
चलो आओ एक आवाज़ बनाये
हर दिल में एक दीप जलाये
खून नहीं
उन्हें प्यार का एक पाठ पढाये
क्या ये इतना मुस्किल है
क्या हम अपनों से इतने जुदा है
शायद नहीं
क्यूंकि हर दिल में बसता, एक खुदा है!
~मिथिलेश झा