हर एक कहानी का आखरी लम्हा ,
सुना हें, खुशनुमा होता है !
फिर गमगीन क्यूँ है दास्ताँ मेरी अभी तक,
हर लम्हा क्यूँ एक पत्थर सा लगता है! .
चला था जहाँ से,
फिर रुक गया हूँ वहीँ पर,
अब ना तो... कदम साथ देते है
और ना ही दिल के जज़्बात,
रोना आता है खुद पर ,
जब देखता हूँ ,
अपने ये हालात !
बढ़ते हुए कदम,
आज भी लड़खड़ाते है मेरे,
जब भी वो बिताये लम्हे उसके साथ
सामने आते है मेरे .
आखिर कब तक चलेगा
ये सफ़र आँधियों का
और कब सिलसिला बारिश का शुरू होगा
देखना चाहता हूँ वो इन्द्रधनुष
क्या मुझे नसीब होगा ….
~मिथिलेश~