तुम्हारी वो मुस्कुराहट आज भी याद है मुझे
जब आती थी मुझसे मिलने फूल जैसे खिलते हुए
चाहता तौ था उस मुस्कुराहट को देख कर , ये कहने का
की तुमसा नहीं कोई इस जहान में
पता नहीं आज वो मुस्कुराहट कहाँ चली गयी तुम्हारी
जो कि मुझे लगती थी अपनी जान से प्यारी
किसने तुम्हारी मुस्कुराहट को मायूसी में बदल दिया
या शायद तुमने खुद ही अपना रुख बदल दिया
क्या हुआ, जो आज नहीं हूँ में तुम्हारे साथ
क्या हुआ, जो आज नहीं रहती तुम मेरे साथ
ये ना सोचो कि तुमने खो दिया है मुझे
ये सोचो कि तुमने कितना दिया है मुझे
हर रात के बाद आती है सुबह
क्या ये नहीं है मुस्कुराने कि वजह
सोचो और सोचकर बताओ
हो सके तौ हमेशा मुस्कुराओ
अपनी मायूसी से निकल कर
निकल पड़ो अपने नए सफ़र की और
रास्ता और आसान हो जायेगा
सिर्फ अपनी मुस्कराहट पे करो थोडा सा गोर
अपनी ये दिल की बात अब बताऊँ में किसे
तुम्हारी वो मुस्कुराहट आज भी याद है मुझे ..
~M .J
Subhan-allah.. Aapke is pyari si muskurahat ne aaj mujhe muskurane ki ek wajah di.. Bahut khoob likha hai aapne.. I was really smiling while reading this entire post "Tumhaari Muskurahat".. Well written:)
ReplyDeleteSukriya Sonia ji aapke khubsoorat sarahana ke liye....Jaankar khushi hui ki hamari rachna aapke chehre par muskurahat laayi.:):)
DeleteLoved these lines:
ReplyDelete"अपनी मायूसी से निकल कर
निकल पड़ो अपने नए सफ़र की और
रास्ता और आसान हो जायेगा
सिर्फ अपनी मुस्कराहट पे करो थोडा सा गोर
अपनी ये दिल की बात अब बताऊँ में किसे
तुम्हारी वो मुस्कुराहट आज भी याद है मुझे .."
Awesome poem Mithlash...:)
Keep writing...:)
Thank you Saru and I am elated you liked this so much:)
DeleteSUUUUPEEERRRRBBBBBBB :)
ReplyDeleteTHHHHHHHHHHHHHAAAAAANNNNNNNNNNNNNNNNNKKK UUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUU! KITNA ACCHA LAGTA HAI AISA LIKHNA:)
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