ना तो वो लम्हा रहा ,
मेरे साथ ,
और ना ही वो ज़ज्बात ,
एक ही चीज़ जो नहीं गयी रूह से ,
कितनी बेदर्द होती है ये याद !
कोशिश तो बहुत की,
हमने उन्हें भूल जाने की ,
तुम साथ नहीं हो,
मेरी रूह को नहीं है ऐतबार !
शायद पाकर खोना
उन्हें ,
ये मेरा नसीब था ,
हाथो पे लिखना नाम ,
वो दिन भी ,
कितना अजीब था !
मालूम न था ,
कागज़ की कश्ती की तरह ,
ये प्यार भी पानी की आगोश में समां जायेगा ,
और मेरी आँखों में ,
सिर्फ आंसुओ का दरिया छोड़ जायेगा ….