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Friday, June 8, 2012

चाँद नज़र आता है ...

शाम  ढलने  पर ,
अँधेरा  तो  आता  है ,
लेकिन  उस  अँधेरे  को  चीरकर,
एक  चाँद  नज़र  आता  है !
कभी  आधा, कभी  अधुरा ,
आरजू  भी  जोरो  से  लहरो  की  तरह ,
उठती  है ,
जब  ये  नज़र  आता  है  पूरा !.
        
तुम्हे  देखकर  अक्सर ,
में  सोचता  हूँ ,
तुम  भी  हो शायद,... मेरे  मन  की  तरह ,
हर  घडी , हर  वक़्त, 
ये  बदलता  रहता  है ,
हर  वक़्त एक  नयी  खोज  में  ये  रहता  है !
तुम्हारा क्या, तुम  तौ  ठीक  हो  , क्यूंकि  सितारे  भी  तुम्हारे  साथ 
लेकिन  मेरे  इस  मन  का  क्या ,
जो  रहता  है  हरपल उदास …

                 ~मिथिलेश~

 

8 comments:

  1. First para marks the entry for the moon. Marvellous described.

    Second para, analogy to the moon, and that is a winner! Strangely, the moon how much ever alone it looks in the sky, it is never alone is it!

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    Replies
    1. Ya you are right moon is never alone. Thank you Jenny for liking this poem:)

      Delete
  2. At times moon makes me sad, this poem has a close resemblance to what I think at times...

    Nicely written!

    ReplyDelete
  3. "तुम्हारा क्या, तुम तौ ठीक हो , क्यूंकि सितारे भी तुम्हारे साथ"........ Waah, kyaa baat hai Mithilash bhai....:)

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  4. Hey Mithlash,

    The new look is really refreshing.:)

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